राष्ट्रीय युवा दिवस 12 जनवरी "स्वामी विवेकानंद"

 राष्ट्रीय युवा दिवस 

12 जनवरी

 "स्वामी  विवेकानंद"



स्वामी विवेकानंद का बचपन:-


बचपन से ही नरेन्द्र अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के और नटखट थे। अपने साथी बच्चों के साथ तो वे शरारत करते ही थे, मौका मिलने पर वे अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। नरेन्द्र के घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराणरामायणमहाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। कथावाचक बराबर इनके घर आते रहते थे। नियमित रूप से भजन-कीर्तन भी होता रहता था। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे पड़ गए। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुक्ता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता-पिता और कथावाचक पंडितजी तक चक्कर में पड़ जाते थे।

 शिक्षा 

स्वामी जी बचपन से ही पढाई में खूब होशियार थे और वे पढाई को महत्व देते थे। यही कारण था की उन्होंने ईश्वरचंद्र विद्यासागर के मेट्रोलिटन संस्थान में दाखिला भी ले लिया था। नरेन्द्र नाथ दर्शनधर्म इतिहाससामाजिक विज्ञानंकला जैसे विषयो के अच्छे पाठक थे। इसके साथ साथ स्वामी जी को वेदउपनिषदभगवत गीतारामायणमहाभारत और अनेक हिन्दू शास्रों में गहन रूचि थी।

इसके साथ-साथ स्वामी जी शारीरिक खेल कूद व्यायाम तथा अन्य कार्यो में भी शामिल होते थे। उन्होंने ललित कला की परीक्षा को भी पास किया था और 1884 में कला सनातक में डिग्री भी प्राप्त कर लिया था। नरेन्द्र ने अनेक प्रकार के किताबो का अध्ययन किया तथा सस्पेंसर की किताब एजुकेशन (1860) का बंगाली मे अनुवाद भी किया था। अपने सनातक के पढाई के साथ साथ उन्होंने बंगाली साहित्य भी सीखा।

 

स्वामी विवेकानंद भारत भ्रमण :-

आपको बता दें कि महज 25 साल की उम्र में ही स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और इसके बाद वे पूरे भारत वर्ष की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। अपनी पैदल यात्रा के दौरान अयोध्यावाराणसीआगरावृन्दावनअलवर समेत कई जगहों पर पहुंचे।

इस यात्रा के दौरान वे राजाओं के महल में भी रुके और गरीब लोगों की झोपड़ी में भी रुके। पैदल यात्रा के दौरान उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों और उनसे संबंधित लोगों की जानकारी मिली। इस दौरान उन्हें जातिगत भेदभाव जैसी कुरोतियों का भी पता चला जिसे उन्होनें मिटाने की कोशिश भी की।

23 दिसम्बर 1892 को विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे जहां वह दिनों तक एक गंभीर समाधि में रहे। यहां से वापस लौटकर वे राजस्थान के आबू रोड में अपने गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तुर्यानंद से मिले।

स्वामी जी की अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषण (1893 – विश्व धर्म सम्मेलन):-

 1893 में विवेकानंद शिकागो पहुंचे जहां उन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान एक जगह पर कई धर्मगुरुओ ने अपनी किताब रखी वहीं भारत के धर्म के वर्णन के लिए श्री मद भगवत गीता रखी गई थी जिसका खूब मजाक उड़ाया गयालेकिन जब विवेकानंद में अपने अध्यात्म और ज्ञान से भरा भाषण की शुरुआत की तब सभागार तालियों से गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

स्वामी विवेकानंद के भाषण में जहां वैदिक दर्शन का ज्ञान था वहीं उसमें दुनिया में शांति से जीने का संदेश भी छुपा थाअपने भाषण में स्वामी जी ने कट्टरतावाद और सांप्रदायिकता पर जमकर प्रहार किया था।

उन्होनें इस दौरान भारत की एक नई छवि बनाई  इसके साथ ही वे लोकप्रिय होते चले गए।

जिसमें उन्होनें अपनी भारत यात्रा के दौरान हुई वेदना प्रकट की और कहा कि उन्होनें इस यात्रा में देश की गरीबी और लोगों के दुखों को जाना है और वे ये सब देखकर बेहद  दुखी हैं। इसके बाद उन्होनें इन सब से मुक्ति के लिए अमेरिका जाने का फैसला लिया।

विवेकानंद जी के अमेरिका यात्रा के बाद उन्होनें दुनिया में भारत के प्रति सोच में बड़ा बदलाव किया था।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना 

मई 1897 को स्वामी विवेकानंद कोलकाता वापस लौटे और उन्होनें रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत के निर्माण के लिए अस्पतालस्कूलकॉलेज और साफ-सफाई के क्षेत्र में कदम बढ़ाना था।

साहित्यदर्शन और इतिहास के विद्धान स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रतिभा का सभी को कायल कर दिया था और अब वे नौजवानों के लिए आदर्श बन गए थे।

1898 में स्वामी जी ने Belur Math – बेलूर मठ की स्थापना की जिसने भारतीय जीवन दर्शन को एक नया आयाम प्रदान किया।

इसके अलावा भी स्वामी विवेकानंद जी ने अनय दो मठों की और स्थापना की।

 स्वामी विवेकानंद की दूसरी विदेश यात्रा:-

स्वामी विवेकानन्द अपनी दूसरी विदेश यात्रा पर 20 जून 1899 को अमेरिका चले गए। इस यात्रा में उन्होनें  कैलिफोर्निया में शांति आश्रम और संफ्रान्सिस्को और न्यूयॉर्क में  वेदांत सोसायटी की स्थापना की।

जुलाई 1900 में स्वामी जी पेरिस गए जहां वे कांग्रेस ऑफ दी हिस्ट्री रीलिजंस’ में शामिल हुए। करीब माह पेरिस में रहे इस दौरान उनके शिष्य भगिनी निवेदिता और स्वानी तरियानंद थे।

इसके बाद वे 1900 के आखिरी में भारत वापस लौट गए। इसके बाद भी उनकी यात्राएं जारी रहीं। 1901 में उन्होनें बोधगया और वाराणसी की तीर्थ यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थय लगातार खराब होता चला जा रहा था। अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था।

स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु – Swami Vivekananda Death

जुलाई 1902 को महज 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई। वहीं उनके शिष्यों की माने तो उन्होनें महा-समाधि ली थी। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। वहीं इस महान पुरुषार्थ वाले महापुरूष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

विवेकानन्द का योगदान तथा महत्व:-

उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गएवे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागोअमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। गुरुदेव रवींन्द्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था, ‘‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएँगेनकारात्मक कुछ भी नहीं

No comments:

Post a Comment